एक ही बांध पर अलग अलग गांव के लिए प्रशासनिक भेदभाव के चलते लागू हुआ मनमर्जी नियम कानून
मुआवजा वितरण ग्रामीण असमानता के चलते झेल रहे आर्थिक तंगी
रायगढ़ (जनकर्म न्यूज़)। केलो बांध को जिस उद्देश्य से बनाया गया है वह अब तक जमीनी हकीकत से कोसो दूर है। नहर अधूरा है इसके अलावा जिन गांव के लोगो को अपने पुरखों की भूमि को लोकहित के मद्देनजर स्वयं को समर्पित कर दिए उन्हें ही एक ही बांध में अलग अलग गांव में प्रशासनिक अधिकारियों की अलग अलग मनमर्जी के हिसाब से कायदे कानून का दंश ग्राम लाखा और दनोट वासी के 386 परिवार झेल रहे है। आलम यह है कि उन्हें मुआवजा राशि 16 साल बाद भी नही मिला है जिसका असर उन्हें समाजिक जीवन मे असमानता तथा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल शहर की लाइफ़लाइन केलो नदी में दिलीप सिंह जूदेव वृहत सिंचाई परियोजना का लाभ मिलने के बजाए प्रभावित ग्रामीणों के लिए अधिकारियों की कारस्तानी से जी का जंजाल बना हुआ है।एक पखवाड़े यानी 16 साल बीत जाने के बाद सबसे अधिक प्रभावित डुबान गांव मुआवजा के दायरे से बाहर है। इसमें लाखा दनोट वासी शामिल है। जबकि यह तत्कालीन राज्य सरकार भाजपा के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट योजना रही है।जिसका शिलान्यास वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने किया था। आधारशिला 2012 में रखा गया। इस परियोजना में प्रशासन द्वारा सौतेला व्यवहार अपनाया हुआ है। जहां लाखा एवं दनोट जिला प्रशासन द्वारा आबादी जमीन एवं उस पर स्थित परिसंपत्तियों (मकान, कुआँ, पेड़ पौधे आदि) की मुआवजा राशि बताई गई, जिसमें आबादी भूमि की राशि, उस पर देय सोलेशियम तथा ब्याज भी सम्मिलित था।
यह राशि नोटिस के माध्यम से समस्त ग्रामवासियों को बताई गई। लोकार्पण के पश्चात मुआवजा लेने के द्वौरान ग्रामवासियों को यह ज्ञात हुआ कि प्रदान की जाने वाली राशि तथा पूर्व घोषित राशि में काफी अंतर है तथा यह अंतर पूर्व घोषित राशि में से आबादी भूमि का मूल्याँकन न किये जाने तथा सोलेशियम एवं ब्याज की राशि काट दिये जाने के कारण थी। जिससे ग्रामवासी अपने आप को काफी ठगा हुआ महसूस करने लगे क्योंकि दूसरे प्रभावित ग्राम जैसे उज्जलपुर में उक्त सभी तथ्यों (आबादी भूमि का मूल्यॉकन तथा उस पर सोलेशियम तथा ब्याज) को मिलाकर पूर्ण भुगतान किया गया । केलो परियोजना एवं भू-अर्जन अधिकारियों द्वारा आजपर्यंत तक उक्त राशि का भुगतान नहीं किया गया जिससे ग्रामवासियों में रोष व्याप्त है एवं शासन द्वारा विस्थापितों को आबंटित भूमि पर कोई भी ग्रामवासी उक्त समस्या सुलझने तक विस्थापित होने को तैयार नहीं है। बहहाल क्षेत्र कर ग्रामीण रायगढ़ में मुख्यमंत्री ड्रीम प्रोजेक्ट केलो परियोजना में समस्याओं और उसके समाधान तलाश कर लाभ दिलाने की मांग कर रहे है।
ऐसे समझे प्रशासनिक अधिकारियों का भेदभाव
प्रभावित ग्रामीणों से लेकर क्षेत्र के मुखर नेता गोपाल अग्रवाल ने बताया की तत्कालीन समय में तत्कालीन अधिकारियों द्वारा इस पर भेदभाव किया है। जिसमे उन्होंने बताया कि दो गांव के लिए अलग अलग नियमो का परिपालन कर ग्रामीणों में थोपा गया हैं। जिसमें एक तरफ पूरी तरह से प्रभावित दनोट व लाखा गांव में मकान का मुआवजा नहीं दिया गया है।इसी के समांतर उज्जवलपुर में मकान से लेकर बाड़ी खेत खलिहान पेड़ पौधे तक का मुआवजा दिया गया है। 16 साल बाद इस भेदभाव को लेकर प्रभावित 386 परिवार अब फिर से अपने हक के लिए आवाज बुलन्द करने की तैयारी मे हैं
सुतियापाठ की तर्ज पर वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से मुआवजा की मांग
प्रदेश में तत्कालीन भाजपा सरकार में कवर्धा के सुतियापाठ सिंचाई परियोजना के लिए बांध बनाया गया है। जिसमें अंचल संपति के साथ ब्याज सलोशियम के तहत मुआवजा दिया गया है। नियम भी यही है मुआवजा की गणना अंचल संपति से हो। इसका परिपालन रायगढ़ दिलीप सिंह जूदेव केलो बांध सिंचाई परियोजना में भी अमल में लाया गया है किंतु यह केवल उज्जवलपुर गांव के लिए ही रहा हैं जबकि पूर्ण रूप से प्रभावित दनोट व लाखा को इससे दूर रखकर छला गया है। कमोबेश मानो एक तरह से नियमों का अव्हेलना अधिकारी अपने अनुकूल किए है। अब यही वजह है सूतियापाठ परियोजना एवं केलो बांध के उज्ज्वलपुर की तर्ज पर मुआवजा वितरित करने की मांग तेज हो गई हैं।
कब क्या हुआ ऐसे समझे
- मुख्यमंत्री महोदय द्वारा सन् 2008 में इस परियोजना का शिलान्यास किया गया ।
- तत्पश्चात परियोजना का लोकार्पण 14 जून 2012 में किया गया ।
- सभी कृषि भूमियों का मुआवजा सन् 2009-10 के दौरान प्रदान कर दिया गया ।
- भुगतान करने के दौरान ही ग्राम उज्जलपुर का आबादी जमीन का भुगतान भी कृषि भूमि के साथ कर दिया गया किंतु इस परियोजना में सर्वाधिक प्रभावित ग्राम लाखा तथा दनौट की आबादी जमीन का भुगतान नहीं किया गया ।
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सन् 2012 में लोकार्पण के पूर्व लाखा एवं दनौट के ग्रामीणों को जिला प्रशासन द्वारा आबादी जमीन एवं उस पर स्थित परिसंपत्तियों (मकान, कुआँ, पेड़ पौधे आदि) की मुआवजा राशि बताई गई, जिसमें आबादी भूमि की राशि, उस पर देय सोलेशियम तथा व्याज भी सम्मिलित था। यह राशि नोटिस के माध्यम से समस्त ग्रामवासियों को बताई गई ।
- समस्त ग्रामवासियों द्वारा इस घोषित राशि से संतुष्ट होकर 14 जून 2012 को लोकार्पण के समय मुख्यमंत्री का भव्य स्वागत किया गया ।
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. लोकार्पण के पश्चात मुआवजा लेने के द्वौरान ग्रामवासियों को यह ज्ञात हुआ कि प्रदान की जाने वाली राशि तथा पूर्व घोषित राशि में काफी अंतर है तथा यह अंतर पूर्व घोषित राशि में से आबादी भूमि का मूल्याँकन न किये जाने तथा सोलेशियम एवं ब्याज की राशि काट दिये जाने के कारण थी।
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ग्रामवासियों द्वारा सत्यानंद राठिया के साथ जाकर इन विसंगतियों की ओर मुख्यमंत्री को अवगत कराया गया जिस पर संवेदनशील मुख्यमंत्री ने सात दिनों के अंदर पूर्व घोषित राशि (आबादी भूमि पर निर्मित मकान सहित अचल संपत्ति का ब्याज एवं सोलेशियम के साथ) भुगतान करने का निर्देश दिया ।
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केलो परियोजना एवं भू-अर्जन अधिकारियों द्वारा आजपर्यंत तक उक्त राशि का भुगतान नहीं किया गया जिससे ग्रामवासियों में रोष व्याप्त है एवं शासन द्वारा विस्थापितों को आबंटित भूमि पर कोई भी ग्रामवासी उक्त समस्या सुलझने तक विस्थापित होने को तैयार नहीं है।
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प्रशासन द्वारा आगामी मानसून में जलभराव करने की बात कही जा रही है जिससे दोनों ग्रामों के 386 संयुक्त परिवारों के मकान जलमग्न हो जाने के कारण वे बेघर हो जायेंगे। ऐसे में प्रशासन तथा ग्रामीणों के बीच टकराव की पूर्ण संभावना है।