Tuesday, October 14, 2025
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मुख्यमंत्री निवास में हरेली उत्सव

मुख्यमंत्री निवास में हरेली उत्सव: छत्तीसगढ़ी परंपराओं की झलक, पारंपरिक कृषि यंत्रों के साथ बिखरी सांस्कृतिक छटा

पारंपरिक लोक यंत्रों के साथ सुंदर नाचा का हो रहा आयोजन

रायपुर, 24 जुलाई 2025/छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू लिए हरेली तिहार का पारंपरिक उत्सव आज मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निवास में विधिवत रूप से आरंभ हुआ। छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्रत्येक अवसर और कार्य के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग होता आया है। हरेली पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में ऐसे ही पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों की झलक देखने को मिली, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं।

काठा

सबसे बाईं ओर दो गोलनुमा लकड़ी की संरचनाएँ रखी गई थीं, जिन्हें ‘काठा’ कहा जाता है। पुराने समय में जब गाँवों में धान तौलने के लिए काँटा-बाँट प्रचलन में नहीं था, तब काठा से ही धान मापा जाता था। सामान्यतः एक काठा में लगभग चार किलो धान आता है। काठा से ही धान नाप कर मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता था।

खुमरी

सिर को धूप और वर्षा से बचाने हेतु बांस की पतली खपच्चियों से बनी, गुलाबी रंग में रंगी और कौड़ियों से सजी एक घेरेदार संरचना ‘खुमरी’ कहलाती है। यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहों द्वारा सिर पर धारण की जाती है। पूर्वकाल में चरवाहे अपने साथ ‘कमरा’ (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे। ‘कमरा’ जूट के रेशे से बना एक मोटा ब्लैंकेट जैसा वस्त्र होता था, जो वर्षा से बचाव के लिए प्रयुक्त होता था।

कांसी की डोरी

यह डोरी ‘कांसी’ नामक पौधे के तने से बनाई जाती है। पहले इसे चारपाई या खटिया बुनने के लिए ‘निवार’ के रूप में प्रयोग किया जाता था। डोरी बनाने की प्रक्रिया को ‘डोरी आंटना’ कहा जाता है। वर्षा ऋतु के प्रारंभ में खेतों की मेड़ों पर कांसी पौधे उग आते हैं, जिनके तनों को काटकर डोरी बनाई जाती है। यह डोरी वर्षों तक चलने वाली मजबूत बुनाई के लिए उपयोगी होती है।

झांपी

ढक्कन युक्त, लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना ‘झांपी’ कहलाती है। यह प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होती थी। विशेष रूप से विवाह समारोहों में बारात के दौरान दूल्हे के वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, पकवान आदि रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। यह बांस की लकड़ी से निर्मित एक मजबूत संरचना होती है, जो कई वर्षों तक सुरक्षित बनी रहती है।

कलारी

बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर ‘कलारी’ तैयार की जाती है। इसका उपयोग धान मिंजाई के समय धान को उलटने-पलटने के लिए किया जाता है।

पारंपरिक लोक यंत्रों के साथ सुंदर नाचा का हो रहा आयोजन

हरेली तिहार के अवसर पर पारंपरिक लोक यंत्रों की गूंज और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक छटा के साथ सुंदर नाचा का आयोजन किया जा रहा है। पूरा परिसर उत्सवमय वातावरण से सराबोर है। ग्रामीण परिवेश की जीवंत छवि इस सुंदर माहौल में साकार हो गई है। कहीं सुंदर वस्त्रों में सजे राउत नाचा कर रहे कलाकारों की रंगत बिखरी है, तो कहीं आदिवासी कलाकार पारंपरिक लोक नृत्य की मोहक प्रस्तुतियाँ दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ का अद्भुत ग्रामीण लैंडस्केप अपनी संपूर्ण सांस्कृतिक सुंदरता के साथ यहां सजीव रूप में अवतरित हो गया है। विभिन्न प्रकार की लोक धुनों में छत्तीसगढ़ी संगीत का माधुर्य अपने चरम पर है।

राउत नाचा, छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति का एक प्रसिद्ध पारंपरिक लोकनृत्य है, जो विशेष रूप से दीपावली के अवसर पर गोधन पूजा के दौरान किया जाता है। यह नृत्य विशेषकर यादव समुदाय (ग्वाला/गोपालक वर्ग) द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण तथा गोधन की आराधना का प्रतीक माना जाता है।

राउत नाचा की परंपरा छत्तीसगढ़ में सदियों पुरानी है। इसे गोवर्धन पूजा से जोड़ा जाता है, जब ग्वाल-बाल भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की स्मृति में यह नृत्य करते हैं। नर्तक रंग-बिरंगे परिधानों में सजते हैं, सिर पर पगड़ी धारण करते हैं और हाथों में लाठी थामे रहते हैं। उनके वस्त्रों को कौड़ियों, घुंघरुओं और अन्य सजावटी वस्तुओं से अलंकृत किया जाता है।

राउत नाचा की प्रस्तुति के दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों — जैसे ढोल, मांदर और नगाड़ा — का प्रयोग होता है। इनकी थाप पर नर्तक सामूहिक रूप से तालबद्ध होकर नृत्य करते हैं।
यह नृत्य केवल धार्मिक आस्था का ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, श्रम की महत्ता, पशुपालन के योगदान और सांस्कृतिक गौरव का संदेश भी देता है। नाचा के साथ गाए जाने वाले गीतों को ‘राउत गीत’ कहा जाता है, जिनमें धर्म, वीरता, प्रेम और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन होता है।

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