Monday, December 1, 2025
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रोजगार, विस्थापन व पुनर्वास की मांग को लेकर जेपीएल प्रबंधन के खिलाफ डटे ग्रामीण

रोजगार, विस्थापन व पुनर्वास की मांग को लेकर जेपीएल प्रबंधन के खिलाफ डटे ग्रामीण


कोर कमेटी की बैठक में ग्रामीणों के बीच हुई बनी थी रणनीति, कंपनी प्रबंधन को दिया गया प्रस्ताव


रायगढ़। मेसर्स जिंदल पावर लिमिटेड तमनार को आबंटित गारे-पेलमा सेक्टर-1 ओपन कास्ट अण्डर ग्राउंड कोल माइंस क ी स्थापना और इसके साथ ही इस क्षेत्र के 14 गांव के प्रभावितों के बीच कडी टकरार बढ़ते जा रही है। प्रभावित गांवों के ग्रामीणों ने लगातार प्रदर्शन व इसका विरोध करते हुए मुख्यत: रोजगार, विस्थापन व पुनर्वास क ी मांग को सुदृढ किया है, वहीं दूसरी ओर अब तक ग्रामीणों की मानें को लेकर कंपनी प्रबंधन अपना निर्णय स्पष्ट नहीं कर सकी है।
ज्ञात हो कि इस कोयला खदान के अधिग्रहण में लिए जाने वाले 14 ग्रामों के ग्रामीण काफी समय से इसका विरोध कर रहे हैं। उनकी मांगों को लगातार खदान आदि की स्थापना से पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, उनकी जल, जंगल व जमीनें कंपनी प्रबंधन व सरकार अपने हिसाब से उपयोग करने में लगी हुई हैं। उनकी निजी कंपनी को कंपनी प्रबंधन को कोयला निकालने के लिए आबंटित किए जाने की योजना के बीच वे अपने आने वाली पीढिय़ों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके साथ ही लगातार प्रदर्शन, आंदोलन, आर्थिक नाकेबंदी सहित रैली के माध्यम से अपने विरोध के स्वर को कंपनी प्रबंधन और सरकार के कानों तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं। उक्त 14 ग्राम के ग्रामीण लगातार इस मुद्दे को उठाने में लगे हैं, ताकि वे जल, जंगल व जमीन को बचा सकें। गौरतलब है कि बीते 6 अक्टूबर को उक्त 14 प्रभावित ग्राम के करीब 2 हजार से अधिक ग्रामीणों ने रायगढ़ स्टेडियम से कलेक्टोरेट तक विशाल रैली निकाली थी और कोल माइंस की स्थापना सहित जनसुनवाई को निरस्त करने की मांग भी की गई थी। इसके बाद हाल में ही जिला प्रशासन, कंपनी प्रबंधन व ग्रामीणों के बीच एक बैठक भी आयोजित की गई थी, हालांकि यह बैठक उनकी कारगर साबित नहीं हुई। किंतु ग्रामीणों ने अपनी मांगों से वहां मौजूद जिला प्रशासन के अधिकारी व कंपनी प्रबंधन के अधिकारियों के बीच रूबरू कराते हुए स्पष्ट किया। इसके बाद कुछ दिनों पहले ही धौराभांठा में ग्रामीणों ने एक बैठक का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने कई निर्णय लिए और आगे की रणनीति को लेकर रूपरेखा तैयार की। इस बैठक मुख्यत: तीन मांगों को लेकर डटे रहने पर विचारविमर्श किया गया। इस संबंध में जिला पंचायत सदस्य रमेश बेहरा ने जानकारी देते हुए बताया कि कोल माइंस से प्रभावित होने वाले ग्रामीण मुख्यत: तीन मांगों रोजगार, पुनर्वास और विस्थापन को लेकर स्पष्ट रूप से उपाए चाहते हैं, क्योंकि कंपनी प्रबंधन तो कोयला निकालने के लिए जमीनोंं को अधिग्रहित कर लेगी, इसके बाद किसानों के पास रोजगार भी छीन जाएगा। ऐसे में उन्हें रोजगार देने की मांग की जा रही है। इसके साथ ही प्रभावित ग्रामीण पुनर्वास व विस्थापन को लेकर स्पष्ट हैं, वे बेहतर पुनर्वास व विस्थापन की नीति अपनाने की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी आने वाले पीढिय़ों के लिए कु छ शेष बच जाए।

ग्राम सभा में जमीन नहीं देने प्रस्ताव पारित
मुख्य बात यह है कि कोयला खदान से प्रभावित सभी 14 गांवों क ी अधिकांश जनता प्रस्तावित खदान का विरोध कर रही है और इसके लिए अपनी जमीनें नहीं देने हेतु ग्राम सभाओं में प्रस्ताव भी पारित किया गया है। इस मामले में ग्रामीणों को स्पष्ट रूप से लगता है कि इससे उनकी सामाजिक, सांस्$कृतिक, धार्मिक, पर्यावरणीय सहित अन्य घटक सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि जो जमीनें कई पीढिय़ों से आजीविका का साधन है तथा अने वाली कई पीढिय़ों तक परितोषण करती रहेंगी, कोयला खदान की स्थापना से ग्रामीणों को इन उपजाऊ जमीनों से सदा के लिए वंचित होना पड़ेगा। ग्रामीणों की मानें तो कृषि के लिए जमीन की पुर्नव्यवस्था करना बहुत ही कठिन होगा तथा उन्हें अनाश्वयक ही विस्थापन का दंश झेलना होगा।
इन बिंदुओं के आधार पर समझौते पर विचार
ग्रामीणों की मानें तो गांव के समीप स्थित उनकी कृषि भूमि खदान के लिए अधिग्रहित की जाएगी तो वे काम क्या करेंगे, ऐसे में उनके गांव व घर की भी जमीनें ली जाएं और उनके लिए नोएडा की तर्ज पर अन्यत्र संपूर्ण पुनर्वास के लिए व्यवस्था की जाए, जिसमें बिजली, पानी, सडक़, स्कूल अस्पताल आदि मूलभूत सुविधा हो। ग्रामीणों का कहना है कि यदि कंपनी प्रबंधन उनकी कृषि भूमि ले लेती है तो ऐसे में उनकी गांव व घर की जमीनों क ा रखने का भी औचित्य खत्म हो जाएगा। यही वजह है कि वे एक ही साथ प्रभावित सभी गांव के ग्रामीणों को सुव्यवस्थित पुनर्वास करा कर दिए जाने की मांग कर रहे हैं।
रोजगार की मांग
इन मुद्दों के लिए बात रखने वाली ग्रामीणों की कोर कमेटी के सदस्यों का कहना है कि कृषि भूमि के अधिग्रहण के साथ ही उनका रोजगार भी सीधे तौर पर खत्म हो जाएगा, कृषि भूमि से जो आमदनी मिलती है वह नहीं मिल पाएगी। ऐसे में वे प्रभावित परिवार के प्रति 2 एकड़/ प्रति राशन क ार्ड के एक सदस्य जो जेपीएल में नौकरी दिए जाने की मांग कर रहे हैं। यह नौकरी उनक ी योग्यता के अनुरूप हो और यदि किसी की योग्यता नहीं है तो उसे प्रशिक्षित कर रोजगार की व्यवस्था करने की मांग ग्रामीण कर रहे हैं। वहीं नौकरी न लेने की स्थिति में 10 लाख रूपए की अतिरिक्त मुआवजा राशि प्रदान करने की मांग को लेकर भी प्रस्ताव बनाया गया है।
मुआवजा 1.20 करोड़ करने की मांग

बीते दिनों धौराभांठा में हुई बैठक में ग्रामीणों ने कंपनी प्रबंधन के अधिकारियों के समक्ष अपना प्रस्ताव रखते हुए जमीन मुआवजा को लेकर भी चर्चा की और इस दौरान अधिग्रहित की जाने वाली जमीनों का मुआवजा 1 करोड़ 20 लाख करने की मांग की। इसके लिए ग्राम सभा में भी प्र्रस्ताव कर किया गया है। ग्रामीणों की मानें तो बीते करीब 17-18 सालों से क्षेत्र में जमीनोंं की खरीदी बिक्री पर लगे प्रतिबंध के कारण इन जमीनों की गाइडलाइन दर में कोई वृद्धि अब तक नहीं हुई है। वर्ष 2008 से तत्कालीन दर 6 लाख, 8 लाख व 10 लाख का 4 गुना के बाजार मूल्यों में यदि 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि की जाए तो 17 वर्षो में यह राशि करीब 1 करोड़ 21 लाख हो जाएगी। यही वजह है कि ग्रामीण इस आधार पर मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

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