मेडिकल कॉलेज के स्टोर रूम में 7 साल से धूल खा रही ढाई करोड़ की लीथोट्रिप्सी मशीन
मरीजों का इलाज तो दूर मशीन की सील तक नहीं खोल सके अफसर
रायगढ़। मेडिकल कॉलेज रायगढ़ के स्टोर रूम में ढाई करोड़ की लागत से 2017 में खरीदी गई लीथोट्रिप्सी मशीन धूल खा रही है। बेवजह हुई खरीदी के कारण इस मशीन से जरूरतमंद मरीजों का इलाज तो दूर इसकी सील तक भी अफसर खोल नहीं सके हैं। अब 7 साल में आउटडेटेड हो चुकी इस मशीन को दोबारा से शुरू करने के लिए मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने शासन से फंड की मांग की है।
मेडिकल कॉलेज रायगढ़ में बेवजह खरीदी का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। करोड़ों की लागत से बने मेडिकल कॉलेज में साल 2017 में 2 करोड़ 46 लाख की लागत से लीथोट्रिप्सी मशीन खरीदी गई थी। सीजीएमएससी के माध्यम से मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने यह मशीन खरीदी थी। इतनी महंगी एडवांस लीथोट्रिप्सी मशीन खरीदने का उद्देश्य था कि मेडिकल कॉलेज रायगढ़ में आने वाले पथरी के मरीजों को राहत मिल सके और सरकारी मेडिकल कॉलेज में ही उनका समुचित उपचार हो सके लेकिन स्वास्थ्य विभाग में सेवा उपलब्ध कराने से ज्यादा खरीदी प्रक्रिया पर ज्यादा ध्यान दिए जाने का ही नतीजा है कि यह लीथोट्रिप्सी मशीन आज तक सील पैक रखी हुई है और कॉलेज के स्टोर रूम में धूल खा रही है।
मरीज प्राइवेट हास्पिटल में दे रहे 45 से 70 हजार
लीथोट्रिप्सी मशीन गुर्दे की पथरी के ऑपरेशन के लिए जरूरी होती है। इस मशीन से गुर्दे की पथरी को छोटा-छोटा करके मूत्र नली के रास्ते बाहर निकाला जाता है। प्राइवेट हास्पिटल में मरीजों को 45 हजार से लेकर 70 हजार तक खर्च करने पड़ रहे हैं लेकिन यही लीथोट्रिप्सी मशीन मेडिकल कॉलेज में शुरू हो जाती तो मरीजों को प्राइवेट हास्प्टिल में अपनी जेबें ढीली नहीं करनी पड़ती।
मरीज प्राइवेट हास्पिटल में दे रहे 45 से 70 हजार
लीथोट्रिप्सी मशीन गुर्दे की पथरी के ऑपरेशन के लिए जरूरी होती है। इस मशीन से गुर्दे की पथरी को छोटा-छोटा करके मूत्र नली के रास्ते बाहर निकाला जाता है। प्राइवेट हास्पिटल में मरीजों को 45 हजार से लेकर 70 हजार तक खर्च करने पड़ रहे हैं लेकिन यही लीथोट्रिप्सी मशीन मेडिकल कॉलेज में शुरू हो जाती तो मरीजों को प्राइवेट हास्प्टिल में अपनी जेबें ढीली नहीं करनी पड़ती।
अब आउटडेटेड हो गई मशीन
लीथोट्रिप्सी मशीन मेडिकल कॉलेज के स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रही है। जनकर्म के जानकारी सूत्रों का कहना है कि 7 साल पहले खरीदी गई इस लीथोट्रिप्सी मशीन अब करीब-करीब आउटडेटेड हो चुकी है। 2017 के बाद से अब उससे भी एडवांस कैटेगरी की मशीनें आ चुकी हैं। ऐसे में आउटडेटेड हो चुकी इस पुरानी मशीन को कॉलेज प्रबंधन किस तरह उपयोग में लाएगा,इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
वर्सन
लीथोट्रिप्सी मशीन 2017 में खरीदी गई थी लेकिन उस वक्त हमारा हास्पिटल केजीएच था। मेडिकल कॉलेज में शिफ्ट होने के बाद इसे शुरू करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इंस्टालेशन के लिए शासन से फंड की मांग भी की गई है।
मनोज मिंज,एमएस
मेडिकल कॉलेज रायगढ़