Tuesday, December 24, 2024
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दो साल पहले बने एमसीएच के डोरमेट्री का हाल का बेहाल, मरीज़ो के स्वजन जमीन में सोने मजबूर

दो साल पहले बने एमसीएच के डोरमेट्री का हाल का बेहाल, मरीज़ो के स्वजन जमीन में सोने मजबूर

एमसीएच जंगल से घिरा है,जमीन में आराम फरमाना और सोने से रेंगते मौत रूपी जीव सांप बिच्छु का खतरा

स्वास्थ्य महकमा और प्रशासन भवन बनाकर भूला दूर दराज से आए मरीज हो रहे है परेशान

डोर मेट्री हाल

बारिश का मौसम चल रहा है। लेकिन इन दिनों गर्मी और उमस से लोग बेहाल है। इससे रेंगती मौत का खतरा बढ़ गया है। इन सभी के बीच एमसीएच यानी मातृ शिशु चिकित्सालय में मरीजों के स्वजनों के लिए बनाए गए डोरमेट्री हाल बेहाल हैं, जंगलो के बीच घिरे इस अस्पताल में डोरमेट्री हाल में जमीन में सोने के लिए लोग मजबूर है जो कभी भी किसी जहरीले जीव के दंश का शिकार हो सकते है। जिसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग को भी है चूंकि सुध लेने के बजाए प्रबंधन उदासीन रवैय्या अपनाए हुए है।
दरअसल स्वास्थ्य विभाग द्वारा कलेक्टर के देखरेख में संचालित दरअसल यहां मरीजों के स्वजनो के लिए ठहरने व रुकने के लिए डोरमेट्री हाल बनाया गया है, वर्तमान परिदृश्य में यह छलावां है। जंगलों से घिरे अस्पताल में स्वजनों को जमीन में ही दिन में आराम तथा रात्रि में सोना पड़ रहा है जिससे बारिश के दिनों में जहरीले जीव का खतरा अत्यधिक रहता है। इसमें रेंगती मौत का भी खतरा बढ़ गया।लेकिन जिम्मेदारी व्यवस्था को माकुल बनाये जाने के बजाए आंख मूंद लिए हैं यहां यह बताया जाना लाजमी होगा कि लंबे समय से एमसीएच बिल्डिंग मरीजो को सेवा देने के लिए बनकर तैयार था परन्तु कभी कोरोना का रोड़ा तो कभी व्यवस्था अधूरी होने से चालू होने में विलंब की मार झेला, लेकिन अब यह अस्पताल फूल फेज में आंरभ हो चुका है।बेहतर इलाज की लालसा लेकर जिले के बाहर से एवं ग्रामीण व शहरी मरीज मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अस्पताल (एमसीएच) प्रसव तथा शिशु रोग का उपचार ले रहे है।शुरुआत में यहां मरीज के भर्ती होने के बाद परिजनों अस्पताल में हरने व बैठने का इंतजाम नही होने से लोग परेशान रहते थे, अस्पताल के सामने खुले आसमान व पेड़ के नीचे छांव में दिन रात समय व्यतीत करते है।वे चाहकर भी कोई ठिकाना ठहरने का नही बना सकते है। क्योंकि वे गरीबी व निन्म वर्ग से ताल्लुक रखने की वजह से निजी तौर पर कोई व्यवस्था कर पा रहे है।
ऐसे में जिम्मेदार विभाग व प्रशासन ने मरीज़ो के परिजनों के रुकने के लिए डोरमेट्री बनाया। लेकिन यह भी आधी अधूरी व्यवस्था के साथ चालू होना कहे या फिर अधिकारियों की लापरवाही उदासीन रैव्यया, जिसके चलते डोर मेट्री हाल में बिस्तर, पलंग, चादर तक की सुविधा नही है। मरीज के स्वजन जमीन में फर्स पर सोने व आराम करने को मजबूर है।वही विडंबना यह है कि अस्पताल स्टाफ़, डाक्टर, प्रबंधन इस नजारे को रोज देख रहे है लेकिन इस व्यवस्था को ठीक करने के बजाए तमाशबीन बनकर नजरा देख कर चलते बनते है ।

सरकारी सुविधाओं में इजाफा मरीज और परिजन इससे वंचित

भर्ती मरीज के परिजन विश्राम गृह शेड तो बनाया गया है चूंकि व्यवस्था और सुविधा नही है। इस वजह से अस्पताल परिसर में मरीज़ो के स्वजन इधर उधर कभी गर्मी तो इन दिनों बारिश में बचने सुरक्षित ठिकाना तलाश करते रहते है। गर्मी में कुछ परिजन अस्पताल के पीछे जब सूरज की किरण पड़ती है तो उसमें उतपन्न परछाईं में वे आराम फरमाते है। खाली जगह में कबाड़ और उसके मध्य पेड़ पौधे के नीचे बैठे रहते हैं स्वयं व अपने साथ आये बच्चों को भीषण गर्मी से ठंडी से बचाने के लिए तमाम प्रकार के व्यवस्था भी स्वयं से करते हुए आसानी से देखा जा सकता हैं।

प्रबंधन देखकर करता है नजरअंदाज

एमसीएच अस्पताल के डोरमेट्री का हाल के वस्तु स्थिति से अस्पताल के हर कर्मचारियों से लेकर अधिकारी वर्ग को हैं। लेकिन इस ओर ध्यान देना मुनासिब नही समझा जा रहा है। रात हो या दिन पंखे से गर्म हवा के उगलने से भर्ती मरीज के परिजन दिन में खुले आसमान के नीचे साइकिल स्टैंड पर नजर आते है, रात्रि में अस्पताल के आईपीडी काउंटर के इर्दगिर्द हाल नुमा स्थान में विश्राम करते है लेकिन जब उन पर गार्डों की नजर पड़ती है तो उन्हें वहां से भी उठा दिया जाता है।इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ग्रामीण अंचल के मरीजो के परिजनों को पड़ रहा है।

जंगल से घिरा है अस्पताल, रेंगते मौत का भी खतरा

एमसीएच अस्पताल शहर से दूर गजमार पहाड़ी एकताल रोड जंगल मे बनाया गया है। इधर एमसीएच के अगल बगल पहाड़ और जंगल होने की वजह से रात में खुले आसमान तथा डोर मेट्री हाल के फर्स पर सोना खतरे से खाली नही है। नीचे जहरीले जीव के काटने भय भी बना रहता है। इस तरह एमसीएच के बाहर तथा डोरमेट्री हाल मरीजों को स्वजनो को कई व्यावहारिक समस्याओं से घेर रखा है। मरीजों के स्वजन चाहकर भी इस समस्या से पीछा नही छुड़ा पा रहे है और जिम्मेदार इससे मुंह फेर रखा है। यही वजह है कि रेंगते मौत रूपी जीव के दंश का भय से लोग रात का अंधेरा डरे सहमे गुजारने को मजबुर हैं।

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