निरोग करने वाली संस्था मेकाहारा परोस रही है रोग, अस्पताल परिसर में मेडिकल वेस्ट का बना अस्थाई पहाड़

एनजीटी के नियमों का उलंघन, खुले में पड़े जानलेवा वेस्ट से सक्रमण का खतरा,लोगो की जान से खिलवाड़

रायगढ़। जिस संस्था पर लोगो को निरोग करने की जिम्मेदारी हो और वही घातक संक्रमण फैलाने में आतुर नजर आ रही है। जिसमें मेकाहारा अस्पताल रायगढ़ से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को प्रबंधन की लापरवाही से परिसर में ही खुले में फेंककर अस्थाई पहाड़ बना रहे है। रायगढ़ स्व लखीराम मेमोरियल मेडिकल कालेज प्रबंधन तथा उसके अधीन चलने वाली संत गुरुघासीदास बाबा अस्पताल की लापरवाही चरम स्तर में है। इससे एनजीटी के निर्देशों का भी खुले तौर पर उलंघन कर रहे है।
रायगढ़ स्व लखीराम मेमोरियल मेडिकल कालेज प्रबंधन की लापरवाही चरम पर है, जिसमें संत गुरुघासीदास बाबा अस्पताल से निकलने वाली बायोमेडिकल वेस्ट को खुले में मेडिकल कालेज अस्पताल के परिसर में ही फेंका जा रहा है। जिसमे मरीजों के लगने वाले इंजेक्शन, दवाइयों के खाली पेपर, मलहम-पट्टी, प्लास्टिक की बोतलें, रूई सहित मेडिकल कालेज का पूरा कचरा डंप किये जा रहा है।
यह डंप कचरा कोई एक दो दिन से नही है बल्कि मानो महीनों से किया जा रहा है। यही वजह है कि अस्पताल में उपयोग होने वाली लाल, पीला काले, पन्नी में कचरा का मानो पहाड़ बन गया हो, यह प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
इन परिस्थितियों से संक्रमण का फैलाव होना तय है,इससे इनकार भी नही किया जा सकता है। वहीं मेडिकल कालेज प्रबंधन की यह प्रक्रिया नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) नियमों के विपरीत है। सीधा- सीधा कानून का उलंघन किया जा रहा है। इससे स्थानीय लोगो के साथ साथ आसपास के इलाके तथा स्वयं छोटे वर्ग के कर्मचारियों में इंफेक्शन फैलने का भय बना हुआ है। इसकी जानकारी स्वयं अधिकारी वर्ग को है, इसके बावजूद भी मेकाहारा अपने ढर्रे में ही चल रहा है। इससे यह कहना गलत नही होगा कि निरोग करने वाली संस्था लोगो को रोग परोस रही है। देखा जाए तो जिले में मेडिकल कालेज अस्पताल की स्थापना के बाद से ही लोगो को स्वास्थ्य सुविधाओं में महानगरो वाली अब भी नही मिल रही है वहीं मरीज और व्यवस्था लोगो को बेहाल कर रही हैं, विभिन्न तरीके के कारगुजारियों के कारण लोग गाहे-बगाहे परेशान होते रहते हैं।
वार्डो में संक्रमण से बचाव के उपाय फिर भुलाते है जिम्मेदारी
उधर विभाग के अधिकारियों के द्वारा अस्पताल के वार्डो में तो स्वच्छता तथा संक्रमण से बचाव के लिए हर तरह के उपाय करते है ।मरीज के स्वजन को कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद भी न तो अस्पताल में घुसने दिया जाता है और न ही वे डाक्टर से उपचार से संबंधित ओपीडी में जाकर सलाह ले सकते है। एक तरह से सुरक्षा के साथ संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी है, जबकि दूसरी ओर पर्यावरण के साथ लोगो के जीवन से खिलवाड़ करने के लिए खुले में उक्त उपयोग में लिए जाने वाले मेडिकल वेस्ट फेंक कर जिम्मेदारी को भुला रहे हैं।
भारत सरकार के स्वच्छता अभियान के उड़ा रहे धज्जियां
दरअसल भारत सरकार द्वारा स्वच्छता को लेकर कई तरह के उपाय कर रहे है। कचरे से कोई संक्रमण न हो इस पर भी भारी भरकम राशि खर्च किया जा रहा है। ऐसे में सरकारी विभाग ही स्वच्छता अभियान और सबसे गंभीर कचरा मेडिकल वेस्ट पर उदासीन रैवये अपनाए हुए है।जिसमे मेडिकल कालेज अस्पताल से निकलने वाली बायोमेडिकल वेस्ट को खुले में अस्पताल के परिसर में ही फेंका जा रहा है।
किस रंग के डस्टबिन में कौन सा कचरा
लाल डस्टबिन: ई-अपशिष्ट (रेजर, ब्लेड, बैटरियां आदि) यह कूड़ा रिसाइक्लिंग/संभावित ऊर्जा स्रोतों के रूप में उपयोग होता है।
पीला डस्टबिन:जैव चिकित्सीय अपशिष्ट (खून युक्त पट्टियां और रूई आदि) इस तरह के कूड़े को इंसीनरेटर में नष्ट किया जाता है।
काला डस्टबिन:शौचालय अपशिष्ट, बच्चों के डायपर, सेनेटरी पैड आदि।




