केजीएच के सेटअप में चिकित्सक और कर्मचारियों की कमी, स्वास्थ्य महकमा में नही ले रहा दिलचस्पी
केजीएच,एमसीएच के हर कर्मियों में वर्क लोड बढ़ा, जीवनदीप और डेलीकर्मियों से व्यवस्था बनाने का प्रयास
रायगढ़। कहते है जब काम चल रहा है तो चलने दो जब जरूरत होगी तो उसे किया जाएगा। यही हाल जिला स्वास्थ्य विभाग का है। यहां चिकित्सा अधिकारी से लेकर चिकित्सक, स्टाफ नर्स,तृतीय-चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों का सेटअप के अनुरूप कमी है। इससे मरीजों को जद्दोजहद नही करना पड़ रहा है, जबकि अस्पताल के सभी कर्मचारियों पर दुगना वर्क लोड भी बढ़ गया है।
गौरतलब है कि जिले में मेडिकल कालेज की सौगात मिलते से स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा हुआ है। शासन हर स्तर में स्वास्थ्य व्यवस्था जन जन तक पहुचाने का कार्य कर रही है। जिले के साथ साथ दूसरे जिले व पड़ोसी राज्य के मरीजों की लालसा भी बेहतर इलाज के लिए ओपीडी- आईडीपी बढ़ा है। करीब पौने 6 साल से केजीएच बिल्डिंग से अलग होकर मेडिकल कालेज अस्पताल गुरू घासीदास स्मृति चिकित्सालय स्वयं के बिल्डिंग में संचालित हो रहा है। ऐसे में केजीएच व मेकाहारा के स्टाफ अपने अपने विभाग में लौट गए।इन परिस्थितियों के बीच जिला अस्पताल से लेकर सिटी डिस्पेंसरी में प्रथम श्रेणी चिकित्सक, चिकित्सा अधिकारी, स्टाफ नर्स से लेकर चतुर्थ वर्ग में कर्मचारियों का टोटा बना है। सूत्रों के मुताबिक सेटअप के अनुसार प्रथम श्रेणी में 18 पद स्वीकृत है लेकिन 13 पद में ही काम चलाया जा रहा है। जबकि अस्पताल का सबसे महत्वपूर्ण अंग और जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही वाला स्टाफ नर्स विभाग है। यहां 45 स्टाफ नर्स की दरकार है लेकिन 9 इसमें भी कम है। इस तरह स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का सीधा असर मरीज़ो पड़ रहा है। इलाज व अन्य सेवा में विलंब हो रहा है। इससे कई बार मरीजो की जान पर आफत बन आती है। व्यवस्था व सुविधाओं की कमी के चलते अस्पताल से रिफर करने की होड़ भी नजर आती है। जिसमें गर्भवती महिलाओं को एमसीएच तथा मेडिकल कालेज, इसके अलावा अन्य गंभीर मरीजो का भी यही हाल रहता है कुछ मरीज के स्वजन अपने मरीज के जान पर खतरा महसूस करते ही सक्षमता के अनुसार निजी अस्पताल का भी रूख करते हैं। बहरहाल जिला अस्पताल को जैसे तैसे व्यवस्था करसंचालन तो किया जा रहा है। लेकिन इसका लाभ शत प्रतिशत मरीज़ो को मिलने के बजाए आधा अधूरा मिला रहा है।
जिला अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मियों के सेटअप पर एक नजर
पद – स्वीकृत – कार्यरत-रिक्त
वरिष्ठ चिकित्सक सह अस्पताल अधीक्षक -1-1
भषेज विभाग 2-1- 1
सर्जिकल विशेषज्ञ 2-1-1
मनोरोग रोग – 1-0-0
स्टाफ नर्स-45- 38-7
फार्मासिस्ट 9-5-4
रेडियोलॉजिस्ट 1-0-1
कान नाक गला-1-0-1
पैथोलॉजी 2-0-2
पीएम नर्स-2-0-2
फिजियोथेरेपी 1-0-1
ईसीजी -1-0-1
ओटी टेक्निशियन-4-3-1
ड्रेसर -3-0-3
वार्ड ब्वॉय -10-4-6
( नोट – आंकड़े 2023 के सेटअप के अनुसार)
मातृ शिशु अस्पताल में पद रिक्त
चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मियों से जिला जूझ रहा है इसमें
मातृ शिशु 100 बिस्तर का हाल बेहाल हैं। यहां 80 पद स्वीकृत है लेकिन किसी भी पद में कोई भी चिकित्सक व अन्य कर्मचारियों की तैनाती नही है। 36 स्टाफ नर्स की दरकार है लेकिन यह पद पूरी तरह से खाली कार्यरत है। ऐसा नही की यहां अस्पताल में नर्स नही है बल्कि जिला अस्पताल में कार्यरत नर्सो की सेवा एमसीएच में रोटेशन के तहत ली जा रही है। इस लिहाज से जब काम चलाऊ स्तर में हो रहा है तो भर्ती व अन्य प्रक्रिया को पूरा करने में स्वास्थ्य महकमा दिलचस्पी नही दिखा रहा है।
विभाग का कामकाज बढ़ा तनाव में कर्मचारी
इधर कर्मचारियों की कमी से जुझते अस्पताल मे कई व्यव्हारिक समस्याओं ने जकड़ रखा है। कुछ विभाग व स्वास्थ्य कर्मियों का कार्य बढ़ गया है। इससे व्यवस्था बनाने में सफल हो रहे है। किंतु वर्क लोड बढ़ने से तनाव से भी ग्रस्त हो रहे है। इससे उनका दिनचर्या भी प्रभावित हो रहा हैं। इसके अतिरिक्त नाम न छापने के शर्त पर कुछ स्वास्थ्य कर्मियों ने बताया कि जो काम कर रहे हैं वह काम ही कर रहा है और जो केवल कुर्सियों में बैठकर मजा लेते हुए काम के बजाए मस्ती कर रहे है।
जीवनदीप में अंशदान काफी कम,बेरोजगार नही दिखा रहे दिलचस्पी
जिला अस्पताल में तृतीय चतुर्थ के साथ डाटा एंट्री अन्य कार्यों के लिए जीवनदीप समिति से भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत की गई थी इसके लिए विधिवत प्रशासनिक स्तर पर अनुमति भी लिया गया है। वहीं, कलेक्टर दर पर भी कर्मचारियों की भर्ती का प्रयास किया गया। लेकिन बेरोजगार स्वास्थ्य डिप्लोमा तथा डिग्री धारी इस रोजगार को दरकिनार कर दिए इसके पीछे की वजह जब जानने के लिए पड़ताल किया गया तो जीवनदीप में अंशदान काफी कम है इसी के साथ कलेक्टर दर पर भी कुशल-असकुशल की श्रेणी के तहत अधिकतम 10000 से 11000 रुपये का वेतन दिया जाता है।




