जल जंगल व जमीन छीन कर देते रहे प्रदूषण, उद्योग नगरी में बेरोजगारो के लिए अवसर कम
जल जंगल जमीन के औद्योगिक समुहों उपयोग के बावजूद
जिले में बेरोजगारी की मार, 1 लाख से अधिक शिक्षित बेरोजगार
बेरोजगारी की मार झेल रहे बेरोजगारों को रोजगार देने बड़े उद्योग समूह नही दिखा रहे दिलचस्पी
जिले में आबोहवा में पर्यावरण प्रदूषण, सड़क हादसे का दंश
रायगढ़। जिले को उद्योगिक पावर हब के नाम से जाना पहचाना जाने लगा है। छत्तीसगढ़ के मानचित्र में भी यह अपनी मुकाम बनाया है। जिस तरह जिले ने कम्पनी की संख्या में इजाफा हुआ है ठीक उसके विपरीत स्थानीय पढ़े लिखे युवक युवतियों के बोरोजगारी की संख्या में अप्रत्याशित बढोत्तरी हुई है । इस पावर हब जिले प्रशासन रोजगार उपलब्ध कराने में फेल नजर आ रहा है। आलम यह है कि बेरोजगारी को लेकर पंजीकृत 110626 है। जिन्हें रोजगार की तालाश है वे नौकरी पाने के लिए भटक रहे है।
देखा जाए तो रोजगार देेने के मामले में जिला पिछड़ा हुआ है।यहां माइंस, प्लांट,क्रेशर ,एवं अन्य संशाधन है ,फर भी रोजगार के लिए साधन नही है। और तो और शासकीय कार्यलयों में भी नौकरी नही होने से पढ़े-लिखे बेरोजगारों बेरोजगारी की मार भारी पड़ रही है। रोजगार कार्यलय से मिली जानकारी के अनुसार 2016 जिले में 1 लाख हजार 11 हजार सौ 626 का जीवित पंजियन रिकार्ड है। यह प्रदेश में बेरोजगारी के आकंड़े को लेकर हायतौबा मचाया है। इस तरह से रायगढ़ औद्योगिक जिले शिक्षित बेरोजगारी की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। जबकि बेरोजगारी के लिहाज से लोगो को रोजगार उपलब्ध नही हो पा रहा है। बीते वर्ष यानी 2024-25 में 15 स्थानों मे रोजगार कैंप लगाया गया है। इसमें 70 से अधिक संस्थानो सम्मलित रहे।इसमे 2379 पद सृजित किया गया।वहीं महज 533 को रोजगार उपलब्ध हो पाया है। इसमे स्नातक, बीएड, डीएड, इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही है।
दुसरी और रायगढ़ जिले में बड़े से बड़े उद्योगों की भरमार है। हर साल 4 से पांच नए उद्योग के लिए जनसुनवाई हो रही है। पेड़ काटे जा रहे है जिले वासी प्रदूषण की मार झेल रहे है। जल जंगल का दोहन किया जा रहा है इसके परिणाम स्वरूप जिले के बेरोजगारों को नौकरी नही मिल रही है और वे मजबूरी वश रोजगार की तलाश में घर परिवार रिश्ते नाते को छोड़कर दूसरे राज्यों की ओर रूख कर रहे है।
कौशल विकास योजना कारगुजारियों से हो रही है ठप
शासन द्वारा लोगो को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लाख दावे एवं प्रोत्साहन देने की बात कही जाती है जो केवल कागजो में ख्वाबो का स्वप्न की तरह होता है ।इसका सही तरीके से क्रियान्वयन नही होने से बेरोजगार की संख्या बढ़ गई है ।देखा जाए तो बेरोजगारों को रोजगार एवं आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शासन द्वारा मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना शुरू किया गया है। अब तक 25 हजार से अधिक ने कम्प्यूटर, सिलाई मशीन, इलेक्ट्रिकल आदि ट्रेडों में प्रशिक्षण ले भी चुके हैं, अब तक सबको नौकरी नहीं मिल पाई है। अभी हजारों ट्रेनिंग लेने के बाद हजारों घूम रहे हैं।
रोजगार देने बरती जा रही उदासीनता
बेरोजगारों को नौकरी देने के मामले में जिला रोजगार एवं स्वरोजगार मार्ग दर्शन केन्द्र द्वारा भी उदासीनता बरती जा रही है। उल्लेखनीय है कि नौकरी की आस में यहां लोग अपने शैक्षणिक प्रमाण पत्रों का पंजीयन कराते हैं। लेकिन जब प्लेसमेंट कैंप लगता है, तो उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। प्रचार-प्रसार भी नहीं किया जाता है। परिणाम स्वरूप नियोजक संस्थाओं के रिक्त पदों की पूर्ति नहीं हो पाती है।
स्थानीय को रोजगार देने में उद्योग समूह का अलग ही नियम कानून
स्थानीय बेरोजगारों को नौकरी देने के मामले में जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते उद्योग जगत व इनसे होने वाले प्रदूषण की मार झेलने के बाद भी उन्हें रोजगार नही मिल पा रहा है । स्थानीय लोगो को लेकर उन्हें रोजगार नही देने के पीछे उद्योगपति का दो टूक यही जवाब रहता है कि वे आंदोलन व अवकाश अधिक लेते है जिसके चलते वे पात्र होकर भी बेरोजगारी की दंश झेलते है। अमूमन यह जिले में मौजूद अधिकांश छोटे बड़े उद्योग का हाल जहां केवल 30 फीसद ही लोगो को रोजगार उपलब्ध है।




