Tuesday, October 14, 2025
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अब लैलूंगा के मोहनपुर में शुरू होगी ऑयल पॉम की खेती, 50 एकड़ रकबे को किया चिन्हांकित

*अब लैलूंगा के मोहनपुर में शुरू होगी ऑयल पॉम की खेती, 50 एकड़ रकबे को किया चिन्हांकित*

*उद्यानिकी विभाग के प्रयास से केन्द्र और राज्य सरकार से हुआ करार*

*रायगढ़।* जिले के लैलूंगा विकासखंड के मोहनपुर गांव के 28 किसान 50 एकड़ की निजी भूमि में ऑयल पॉम की खेती करेंगे। उद्यानिकी विभाग के प्रयास से केन्द्र और राज्य सरकार व एक प्राइवेट कंपनी से किसानों का एमओयू (समझौता) हो चुका है। खेती करने के लिए किसानों को निशुल्क पौधा भी मिलेगा और अलग-अलग चीजों में शासन से अनुदान भी मिलेगा और अन्य फसलों की तुलना किसानों के आय में वृद्धि भी होगी।
दरअसल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के तहत देश के सभी राज्यों में ऑयल पॉम क्षेत्र का विस्तार करना है। जिससे खाद्य तेल की आपूर्ति हो सके। ऑयल पॉम एक मात्र ऐसी फसल है जिसकी दर हर साल निर्धारित होती है। 5 साल पहले फ्रेस फुट ब्रंज की कीमत 9 रुपए थी, आज 14 रुपए है, लगातार वो बढ़ते ही जा रही है। यही कारण है कि केन्द्र सरकार द्वारा पूरे देशभर में ज्यादा से ज्यादा किसानों को इस फसल की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसी क्रम में उद्यानिकी विभाग द्वारा लैलूंगा के मोहनपुर गांव का निरीक्षण किया गया। जहां सैकड़ों एकड़ खाली जमीन देख उन्हें ऑयल पॉम के खेती की उम्मीद जगी। इसके बाद विभागीय कर्मचारियों द्वारा स्थानीय किसानों से बातचीत करने पर इस बात की जानकारी हुई कि वो भी नए फसल लगाने को इच्छुक हैं। ऐसे में क्षेत्र के 28 किसान अपने 50 एकड़ (21 हेक्टेयर) निजी भूमि में ऑयल पॉम की खेती करने को राजी हो गए हैं। इसके लिए उद्यानिकी विभाग ने किसानों का केन्द्र, राज्य सरकार व ओडिशा की गोदरेज एग्रोवेट कंपनी से समझौता करा दिया है। कंपनी द्वारा इन्हें निशुल्क पौधा दिया जाएगा। ये पौधे जीरा तरा ऑयल पॉम नर्सरी बरगढ़ ओडिशा में तैयार है। 10 अगस्त को ग्राम मोहनपुर में विशाल पौधरोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।

*प्लांट खोलने की चल रही तैयारी*
दरअसल अधिक से अधिक क्षेत्रों में फसल उत्पादन करने से ही रॉ मटेरियल की उपलब्धता मिलेगी। इसीलिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि शासन छत्तीसगढ़ में भी तेल मिल प्लांट स्थापित कर सके। शासन के पास साल के 365 दिन में अगर न्यूनतम 210 दिन का रॉ मटेरियल रहेगा तो मशीन कभी बंद नहीं होगी और काम चलता रहेगा। रकबा ज्यादा कवर करेंगे तो ज्यादा फसल आएगा। ज्यादा फसल आएगा तो रॉ मटेरियल की उपलब्धता ज्यादा होगी। वर्तमान में आंध्र प्रदेश में एकमात्र प्लांट लगा है जो ओडिशा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों के उत्पादन पर निर्भर है तब जाकर उसका प्लांट चल रहा है।

*बची जमीन में लगा सकते हैं साग सब्जी*
उद्यानिकी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार एक एकड़ में 57 पौधे लगाए जाते हैं, इस तरह एक हेक्टेयर में 143 पौधे लगाते हैं। वहीं एक पेड़ से दूसरे पेड़ की दूरी 9 मीटर बाई 9 मीटर होती है। एक पेड़ से एक साल में न्यूनतम एक हजार रुपए की आमदनी होती है। वहीं एक हेक्टेयर में 1 लाख 43 हजार रुपए किसानों को मिलता है। पौधे लगाने के चौथे साल यह फल देना शुरू करता है इसके बाद लगातार 30 साल तक फल देता ही रहता है। इसके अलावा पौधों के बीच में जो खाली जमीन रहती है उसमें किसाना साग-सब्जी, भाजी भी लगा सकते हैं। जब तक ऑयल पॉम फल नहीं देता तब तक ये उनसे ही अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। ऐसी खेती के लिए शासन से किसानों को 5 हजार 250 रुपए व रखरखाव, खाद, दवाई के लिए भी 5 हजार 250 रुपए अनुदान मिलता है। वर्तमान में जिले के सुकुल भठली पुसौर में किसान चन्द्रशेखर प्रधान द्वारा साढ़े 3 एकड़, छिंदभौना तमनार में किसान कैलाश शर्मा द्वारा 25 एकड़ व लोइंग में ब्रजेश गुप्ता सहित अन्य गुप्ता परिवार द्वारा 5 एकड़ में ऑयल पॉम की खेती की जा रही है। जिससे ये साल में लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं।

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