रेत सप्लाई ठप, शहर से लेकर गांव में सरकारी और निजी निर्माण कार्य मे लगा ब्रेक,
आपूर्ति की प्रभावित, मनमानी कीमत वसूल रहे है कारोबारी, प्रति ट्रेक्टर पहुचा 3 हजार के पार
रायगढ़।
रेत खदानों की स्वीकृति लटकने से सरकारी और निजी अधोसंरचना निर्माण कार्य बुरी तरह से प्रभावित हो गया। प्रशासनिक उदासीनता के चलते तथा इससे जुड़े कारोबारी मनमानी कीमत पर रेत सप्लाई कर रहे है। जिस पर प्रशासन का लगाम नही है। निजी व सरकारी काम लिए ठेकेदार इस कीमत पर मजबूर होकर रेत ले रहे है। इसका असर मध्यम वर्ग तथा पीएम आवास मकान बनाने वाले तबके पर खुले तौर पर पड़ रहा है।
गौरतलब हो कि कुछ वर्ष पहले जिले के रेत खदान एवं नदी घाट ग्राम पंचायत के अधीन था जिसमें व्यपाक स्तर में खनन की राशि का बंदरबाट हो जाता था, जिसे राज्य शासन द्वारा रेत घाट कोयला की तर्ज पर नीलामी की थी। जिसमें जिले के 39 खदान था, 9 को पर्यावरण विभाग ने हरी झंडी दे दी थी लेकिन बाकी में कई अड़चन के चलते अधर में लटका हुआ था। ऐसे ने स्वीकृति बैगेर रेत की भारी मात्रा में तस्करी हो रही थी। जिसमें शासन ने संज्ञान लेते हुए कलेक्टर एसपी को जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही तय करते हुए कार्रवाई का आदेश दिया था। वही वर्तमान में जिले के सबसे बड़े रेत घाट तारापुर, जरकेला, कसडोल से रेत की सप्लाई हो रही थी, लेकिन यह भी अब स्वीकृति के लिए लटका है यही हाल अन्य घाट का भी बना है। इधर बारिश में रेत उपलब्ध नही हो पा रहा है,
इस स्थिति के चलते रेत की किल्लत निजी व सरकारी क्षेत्र में होने लगी हैं। रेत की ट्रेक्टर ट्राली पहले 1000 से 12 सौ में मिल रहा था वो अब 3000 से 3500 हजार के पार पहुच गया है। फिलहाल रायगढ़ जिले में वर्तमान में एक ही जीवित रेत घाट है। लेकिन मानसून के चलते इस पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
3 नए घाट भी चिन्हित पर पर्यावरणीय स्वीकृति में लटकी
जिले में छोटे-बड़े 39 रेत खदान का संचालन हो रहा है जिसमें 9 वैध संचालित बाकी 23 की भी नीलामी पूर्व में हो चुकी है लेकिन पर्यावरणीय स्वीकृति नही मिल पाई । इस वजह से इन खदानों व घाट से बड़े स्तर में अवैधानिक रूप से खनन कर रेत निकाला गया। इसका असर शासन के राजस्व पर पड़ रहा है। वही इस बीच 3 नए खदान की स्वीकृति मिल चुकी हैं जिसमें उसरौट, टायांग,पामगढ़ रेत घाट खदान शामिल है। लेकिन यह भी स्वीकृति के आभाव के लटक गया है।
आम आदमी और ठेकेदार परेशान रेत की बढ़ी कीमत से परेशान
रेत खनन व परिवहन में लगे वाहनो को के पहिए थम गए। रेत नदी से नही निकलने से जिन ठेकेदार के पास रेत है वे रेत को पहले ही वस्तु स्थिति को समझते हुए डंप कर दिए थे। अब वहीं रेत को मनामनी कीमत में बिक्री कर रहे है।
इसका असर अब निर्माण कार्य में पड़ने लगा है। जिसमें निजी और सरकारी क्षेत्र में चल रहे अधोसंरचना निर्माण कार्य मे रेत की किल्लत होने लगी है। अगर कही से रेत उपलब्ध भी हो रही है तो उसकी कीमत दुगना हो गया है।
इससे निर्माण कार्य का बजट भी बिगड़ गया है।
लोगो के घरों का सपना पर ग्रहण
रेत का उत्पादन नही होने से निजी और शासकीय निर्माण बंद होने का सीधा असर राजमिस्त्री और मजदूरों पर भी पड़ रहा है। मकान मालिक कीमत कम होने के इंतजार में काम ही बंद कर दिए है। इससे वर्षा काल मे मजदूर मिस्त्री वर्ग बेरोजगारी का दंश भी झेलने की स्थिति में है।जिससे बाजार की व्यवस्था पर भी असर पड़ने की पूरी संभावना है। इधर निर्माण कार्य बंद होने से इससे जुड़े सैकड़ों मजदूर परिवारों को भी सीधा नुकसान उठाना पड़ा रहा है । इससे बाजार की व्यवस्था और अर्थव्यवस्था भी असर होने के आसार है।
रेत की कीमत पर एक नजर
रेत बड़ी ट्राली कीमत 3000 -3500 रुपये( 120 फीट)
रेत छूती ट्राली कीमत 2800-3000 रुपये ( 90 फीट)
रेत बड़ा डंफर 18000 -22000 रुपये
नोट- रेत की कीमत स्थानीय रेत परिवहन ठेकेदार के बताए अनुसार
कही बिगड़ न जाए पीएम आवास रैंकिंग
इन दोनों एक तरफ जहां रे की कीमत आसमान छू रहा है वहीं दूसरी और छड़ सीमेंट की कीमत में काफी गिरावट आया है। लेकिन रेत बिना निर्माण कार्य संभव नहीं है । जानकारों को मुताबिक यही वजह की जिले में छठ सीमेंट की कीमत में गिरावट आई है। हालत यह गिरावट वैश्विक स्तर पर है। फिलहाल प्रधानमंत्री आवास योजना से संबंधित हितग्राहियों के घर पर भी बजट का बढ़ रहा है जिसके चलते रायगढ़ की स्थिति चौथे से खिसक कर पिछड़ने के आसार बन रहे है यह कहना गलत नहीं होगा।