Monday, October 13, 2025
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ध्यान करने की बजाय छोटी छोटी बातों में ध्यान देने की जरूरत :- प्रियदर्शी

कुष्ठ रोगियों को गले लगाकर अघोरेश्वर ने सेवा के आदर्श मापदंड स्थापित किए :- पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम

पूज्य अघोरेश्वर के जन्मोत्सव पर बाबा प्रियदर्शी राम का आशीर्वचन, ध्यान करने की बजाय छोटी छोटी बातों में ध्यान देने की जरूरत, अघोरेश्वर ने अपनी त्याग तपस्या का लाभ समाज में वितरित किया

रायगढ़:- अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा के पीठाधीश्वर पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम जी ने पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम के
अवतरण दिवस पर आशीर्वचन देते हुए कहा बाल्यकाल में ही घर का परित्याग करने वाले अघोरेश्वर को यह ज्ञान हो गया था नश्वर संसार दुखो का सागर है कठोर साधना के जरिए अर्जित ज्ञान के जरिए ऐसे मार्ग प्रशस्त किया जिससे आने पीढ़ी दुखो के भवसागर को सहजता से पार कर सके। बाबा प्रियदर्शी राम ने अघोरेश्वर भगवान राम के बाल्यकाल के सफर एवं उसके बाद कठोर साधना तपस्या पर विस्तार से प्रकाश डाल कर जनमानस को अवगत कराया यौवन काल में कठोर साधना से अर्जित आत्म ज्ञान के जरिए भगवान राम ने समाज के उपेक्षित शोषित भटके दुखी वंचित मनुष्यों को राह दिखाने का काम किया। पीड़ित मानव की सेवा इनके जीवन का मूल उद्देश्य रहा। अघोर पंथ में अनेकों महापुरुष हुए उनके पूज्य अघोरेश्वर ने ही इस पंथ और मानव समाज के मध्य एक सेतु का निर्माण किया जिससे जरिए आने वाली पीढ़ी इसके जरिए अपना आत्म उद्धार आसानी से कर रही है । इस पंथ को लेकर समाज में फैली बहुत सी भ्रांतियों को अघोरेश्वर ने दूर करने का प्रयास किया यही वजह है कि श्मशान से समाज की और एक नवीन अवधारणा का सूत्रपात हुआ। ये वो दौर था जब कुष्ठ रोग लाइलाज एवं छुआछूत का रोग माना जाता था और ऐसे रोगियों को लोग अपने घर से निष्काशित कर मरने में लिए छोड़ देते थे राह चलते अघोरेश्वर ने कृष्ट रोगियों के दर्द को समझा और कृष्ठ रोगियों को गले लगाकर आम जनमानस को यह संदेश दिया कि रोगी से नहीं बल्कि रोग से घृणा करो। घर से निष्काशित कुष्ठ रोगियों के लिए अघोरेश्वर ने पृथक आश्रम की स्थापना कर फकीरी पद्धति से कुष्ठ रोग को लाइलाज बनाकर पीड़ित मानव को गले लगाकर इलाज करते हुए पीड़ित मानव की सेवा के आदर्श का उच्च कीर्तिमान स्थापित किया। पीड़ित मानव की सेवा के साथ साथ उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों आडंबरों कर्मकांड को खत्म करने की दिशा में भी बहुतेरे प्रयास करते हुए समाज को यह समझाने का प्रयास किया समस्याओं का समाधान बाहर नहीं बल्कि भीतर है। सर्व व्यापी परमात्मा का अंश सभी के अंदर स्थापित है बस सभी मनुष्य को आत्मा स्वरूप में देखे पहचाने जाने की आवश्यकता है। इससे जाति धर्म ऊंच नीच का भेद स्वत: समाप्त हो जाएगा। अच्छे बुरे कार्यों के सोच का लेखा जोखा मनुष्य के साथ रहता है । जिसके परिणाम को बदला नहीं जा सकता। भक्ति के मार्ग की मोक्ष का श्रेष्ठ मार्ग बताते हुए कहा पूज्य पाद प्रियदर्शी राम ने कहा मृत्यु के बाद शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है मृत्यु के पश्चात उनकीे सद गति के नाम पर किए जा रहे दान दक्षिणा पूजा पाठ अर्चना को व्यर्थ का आडम्बर बताते हुए कहा मनुष्य की आत्मा इन सभी गतिविधियों से अनभिज्ञ रहती है। बाबा प्रियदर्शी राम ने युवा पीढ़ी से कुरीतियों के बदलाव का आह्वान करते हुए कहा मृत्यु के बाद बढ़ रहे आडंबर की बजाय जीते जी माता पिता को तीर्थाटन कराए। मोक्ष के नाम कर चल रही मृत्यु भोज की बढ़ती हुई परिपाटी को खतरनाक बताते हुए कहा ऐसे आयोजनों से हम आने वाली पीढ़ी को भ्रमित करेंगे। खर्चीली शादियों पर भी चिंता जाहिर करते हुए कहा अघोर पंथ खर्चीली शादियों को रोकने के लिए आश्रम में समिति मेहमानों की उपस्थिति में विवाह पर जोर देता है। खर्चीली शादियों से समाज के मध्यम वर्गीय लोगों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है।खर्चीली शादी को रोकने से दहेज जैसी कुरीतियों से मुक्ति मिलेगी साथ ही पीढ़ी के लिए एक आदर्श मिशाल पेश करेंगे। पूज्य बाबा ने समाज के प्रबुद्ध जनों से आह्वान करते हुए कहा सामूहिक प्रयासों के जरिए खर्चीली शादी पर रोक लगाई जानी चाहिए। विधवा विवाह हेतु भी आश्रम द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा विधवा से विवाह बेसहारा स्त्री को सहारा देकर पुण्य अर्जित करने वाला कर्म है। संस्था द्वारा विधवा विवाह का कार्य भी संपन्न कराया जाता है।शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ साथ मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की विधि पर प्रकाश डालते हुए बाबा प्रियदर्शी राम में कहा आज ध्यान करने की बजाय जीवन में आचरण व्यवहार संगत पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है केवल इस बात का बोध मनुष्य को सभी विकारों से दूर रखने में मददगार साबित हो सकता है। शरीर में मौजूद गंदगी नहाने मात्र से दूर हो सकती है लेकिन मनुष्य जीवन में वैचारिक मलीनता से उत्पन्न दोषों को दूर करने की सही विधि नहीं जानता और इसका दुष्परिणाम मनुष्य को झेलना पड़ता है । शास्त्रों में लिखी बातों का जिक्र करते हुए पूज्य बाबा ने कहा कैसी भी स्थिति परिस्थिति हो सदैव अच्छी सोच के जरिए अच्छी वाणी बोलनी चाहिए और शुभ कर्म करना चाहिए। शरीर की गंदगी को दूर किए बिना जीवन कठिन है वैसे ही वैचारिक गंदगी मनुष्य को जीवन की वास्तविकता से दूर रखती है। हर छोटी छोटी बातों का ध्यान रखे जाने से मनुष्य अपने जीवन को आसानी से सुख शांति समृद्ध मय बना सकता है। खान पान रहन सहन सहित छोटी बातों का समुचित ध्यान रखे जाने की आवश्यकता भी जताई। गीता में लिखे उद्धरणों का जिक्र करते हुए मात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पूज्य बाबा ने कहा जैसे भोजन शरीर के लिए आवश्यक है लेकिन भोजन की मात्रा का ज्ञान ना होने से भोजन की अधिक मात्रा रोगों को निमंत्रण देती है। वही भोजन की कम मात्रा शरीर को कमजोर बना सकती है। इसलिए हर व्यक्ति को जीवन में मात्रा का महत्व मालूम होना चाहिए। भगवान बुद्ध को भूखे रहने के दौरान सुजाता से मिली सहायता का जिक्र करते हुए पूज्य बाबा ने कहा कि ईश्वर पर आश्रित रहने वाले मनुष्यों को कभी दुखो का सामना नहीं करना पड़ता।आहार विहार की अनुचित मात्रा जीवन की साधना और ध्यान को प्रभावित कर सकती है इसलिए उचित मात्रा का समुचित ध्यान रखा जाना चाहिए। पूज्य प्रियदर्शी राम जी ने जीवन में मंत्र जाप का महत्व समझाते हुए मंत्र जाप को जीवन के लिए कल्याण कारी बताया।गुरु जनों संतों के सान्निध्य से मिले संदेशों के साथ साथ उनके मार्गदर्शन को जीवन आचरण में उतारने की आश्यकता भी जताई।जीवन में चिकित्सक और संत को भूमिका को एक समान बताते हुए कहा दोनों ही दवा के साथ साथ परहेज भी बताते है । परहेज के साथ दवा का सेवन ही शरीर एवं जीवन के रोगों का निदान करते है। ज्ञान के साथ विनम्रता को आवश्यक बताते हुए पूज्य बाबा ने कहा ज्ञान का अंहकार जीवन के लिए नुकसान देह है । ज्ञान का अहंकार मनुष्य के नाश का कारण बन जाता है । जशपुर क्षेत्र में पूज्य बाबा जी के साथ जीवन से जुड़े संस्मरणों को भी साझा करते हुए कहा पूज्य अघोरेश्वर ऐसे संत रहे जिन्होंने अपने आचरण वाणी व्यवहार पहनावे से भी समाज को संदेश देने का प्रयास किया ।भक्ति भाव से अर्पित किसी भी वस्तु की मात्रा मायने नहीं रखती बल्कि ईश्वर आग्रह पूर्वक सम्मान पूर्वक दी गई हर वस्तु को ग्रहण करते है।सुदामा के प्रेम पूर्वक भेंट किए गए कच्चे चावलों को भी भगवान कृष्ण ने सहजता से स्वीकार किया।भक्ति का अमीरी गरीबी से संबंध नहीं होता। भाव से ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है। सामग्री जुटा कर यज्ञ करने की बजाय तुलसी के एक छोटे पत्ते के जरिए ईश्वर को भक्ति से प्रसन्न किया जा सकता है। वनवास में पाण्डवों के यहां महर्षि दुर्वासा के आतिथ्य के प्रसंग का विस्तार से जिक्र करते हुए बतायाअन्न का एक दाना ना होते हुए भी द्रौपदी ने कृष्ण को भक्ति के जरिए दुर्वासा के साथ आए संतो को भोजन से तृप्त कर दिया। ध्यान से की गई भक्ति जीवन में आहार विहार एवं वाणी में नियंत्रण भी लाती है। क्रोध में मनुष्य अपना बोध खो देता है ईश्वर की भक्ति से क्रोध भी खत्म होता है।जैसे नवरात्र में नियम बद्ध होकर उपवास कर अनुष्ठान करते हैं उसी तरह हर मनुष्य को स्वयं को नियम बद्ध करते हुए अपने जीवन को अनुष्ठान बना लेना चाहिए।जब आपका जीवन अनुष्ठान हों जायेगा तो नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होना शुरू हो जाएगा।जीवन में नियम बद्ध कार्य अनुष्ठान की तरह है जैसे अनुष्ठान से मन की मुराद पूरी हो जाती है वैसे ही नियमबद्ध जीवन शैली मनचाहा परिणाम देती है। ईश्वर की भक्ति सामग्री से ही हो यह आवश्यक नहीं है भक्ति की लिए भाव की आवश्यक बताते हुए मानसिक पूजा का उदाहरण देते हुए पूज्य बाबा ने कहा ईश्वर की भक्ति अमीरी गरीबी से परे होती है। ईश्वर भक्ति से जुड़े कर्तव्यों के संबंध में बाबा प्रियदर्शी राम जी ने कहा ईश्वर भक्ति के दौरान अर्पित की गई सामग्री को यत्र तत्र नदी नालों में विसर्जित करने की बजाय वृक्षों की जड़ों में डालना चाहिए ताकि ईश्वर पर अर्पित वस्तुओं का अपमान ना हो । इससे वृक्षों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है । परमात्मा के बनाए इस संसार में कोई कार्य निरर्थक नहीं होता।कार्य करने के भाव को महत्व पूर्ण बताते हुए कहा देश की सीमा में खड़ा सैनिक रक्षा के लिए हत्या करे तो वह पुरुस्कृत होता है लेकिन देश की सीमा के अंदर किसी की हत्या करना दंड मिलने का कारण बन सकता है।कर्म करने का भाव कर्म को अच्छा या बुरा बनाता है। मल का उदाहरण देते हुए कहा मल को गंदा मानकर उसका परित्याग किया जाता है लेकिन यह मल भी निरर्थक नहीं होता मल में भी बल है । यदि मल शरीर का साथ छोड़ दे पूरा शरीर निस्तेज हो जायेगा। मल मनुष्य के लिए गन्दगी है लेकिन वृक्षों के लिए उर्वरा शक्ति है इसलिए कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं बल्कि मानव की सोच इसे अच्छा या बुरा बनाती है। इस संसार में किसी के प्रति ईर्ष्या निन्दा अपमान का भाव नहीं रखना चाहिए अन्यथा यह ईश्वर की बनाई दुनिया में ईश्वर का अपमान है।उस महात्मा ने सभी के अन्दर बैठे प्राण आत्मा को समझा और समाज को बताया कि मनुष्य को नाम और पद देखने की बजाय हर व्यक्ति को आत्म स्वरूप से देखा जाना होनी चाहिए। जाति धर्म ऊंच नीच के भेद से समाज परिवार में वैमनस्यता का भाव पैदा होता है। सत्य का बोध होने से जीवन की भ्रांतियां दूर होती है। जैसे रस्सी को अज्ञानता वश हम सर्प समझ लेते है जैसे ही हमें रस्सी की सत्यता का बोध होता है सर्प समझने की अज्ञानता अपने आप दूर हो जाती है। ब्रम्ह सत्य जगत मिथ्या की कहावत है लेकिन मनुष्य संसार को जिस रूप में देखता है वह मिथ्या है । जैसे सत्य को जानने वाला घड़े की मिट्टी को देखता है और जो सत्य को नहीं जानता वह घड़े को देखता है। जन्म की प्रक्रिया भी मिट्टी से जुड़ी है और मृत्यु के बाद मिलना भी मिट्टी में है यही जीवन का सत्य है।

ध्यान करने की बजाय छोटी छोटी बातों में ध्यान देने की जरूरत :- प्रियदर्शी

बाबा प्रियदर्शी राम में कहा घंटों बैठकर ध्यान करने की बजाय जीवन में आचरण व्यवहार बोली संगत पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है केवल इस बात का बोध मनुष्य को सभी विकारों से दूर करने में मददगार साबित हो सकता है। शरीर में मौजूद गंदगी नहाने मात्र से दूर हो सकती है लेकिन मनुष्य जीवन में वैचारिक मलीनता से उत्पन्न दोषों को दूर करने की सही विधि कोई नहीं जानता और इसका दुष्परिणाम मनुष्य को झेलना पड़ता है । जीवन में क्रोध की बजाय बोध होना चाहिए।

भक्ति के दौरान ईश्वर को अर्पित सामग्री वृक्षों की जड़ों में डालने का आह्वान

ईश्वर भक्ति के दौरान अर्पित की गई सामग्री को यत्र तत्र नदी नालों में विसर्जित करने की बजाय वृक्षों की जड़ों में डालने का आह्वान मरते हुए पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा ईश्वर पर अर्पित वस्तुओं का सम्मान करते हुए इसे नदी तालाब में प्रवाहित करने की बजाय वृक्षों की जड़ों में डाले इससे उर्वरा शक्ति बढ़ती है ।

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