नेशनल हाइवे से लेकर शहर की सड़कों पर मवेशियों का जमावड़ा राहगीरों से लेकर बेजुबानों के लिए बना मौत का डगर
मवेशियों को खुला छोड़ने वाले मालिकों पर है जुर्माना का प्रावधान बावजूद नही हो रही धरपकड
रोका छेका अभियान कागजो में होने से मवेशियों से लेकर नेशनल हाइवे व अन्य मार्गों में आवागमन करने वाले राहगीरों के लिए मौत का सबब बन चुका है जिससे आए दिन दुर्घटना हो रही है लोग जान गवा रहे है।
गौरतलब हो किप्रदेश भर में शासन की महत्वाकांक्षी योजना रोका छेका का शुभारंभ वर्ष 2021 के 19 जून से किया गया था। इस योजना के तहत आवारा घुमंतू मवेशियों को सड़को से पकड़कर गोठान में रखना है। इससे किसानों की फसल नुकसान सड़क दुर्घटना में बेजुबान की मौत को को कम करना है। क्योंकि देशभर में पशुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, तो वहीं चारागाह में कमी आती जा रही है। लेकिन शहर के मुख्य मार्ग , नेशनल हाइवे ग्रामीण अंचल की सड़कें, शहर के सरकारी दफ्तर के बाहर, शहर के अंदर की सड़कों पर मवेशियों का जमावड़ा नजर आ रहा है। शहर के किसी भी सड़कों में इन दिनों मवेशियों का झुंड को देखना आम बात हो गया है यह हादसे का सबक तो बन रहा है । देखा जाए तो शासन द्वारा आवारा मवेशियों को छोड़ने वाले को ऊपर कार्रवाई का प्रावधान रखा है। जिसमें प्रति मवेशी 350 रुपये और खुराकी के लिए 150 रुपये प्रतिदिन तय किया है लेकिन निगम व जनपद नगर पंचायत प्रशासन द्वारा इस दिशा में कोई भी कार्रवाई नहीं कर रही है जिसका असर सड़को में दिखाई दे रहा है। वहीं मवेशियों के दंगल से कई बार राहगीर तथा घर दुकान के सामने खड़ी मोटरसाइकिल भी क्षतिग्रस्त हो चुकी है। लेकिन इनकी सुध जिम्मेदार नगर निगम, पंचायत जनपद विभाग लेना मुनासिब नहीं समझ रहे है।
क्या था रोका-छेका योजना
प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रोका-छेका योजना की शुरूआत की थी। इस योजना के तहत गांवों में खरीफ फसलों की मवेशियों से सुरक्षा का उद्देश्य रखा गया था, खुले में घूमने वाले पशुओं पर रोकथाम लगाना था जबकि यह रोका-छेका छत्तीसगढ़ की पुरानी परंपरा है। इसके जरिए संकल्प लिया जाता है कि खरीफ फसलों की खेती के दौरान सभी लोग अपने मवेशियों को बाड़े और गौठान में ही रखेंगे। शहर तथा ग्रामीण अंचलों में गोठान बनाया गया।चूंकि वर्तमान सरकार इस गोठान को चलाने के बजाए भुला दी है जिससे मवेशियों का जमावड़ा सड़को पर हो रहा है।
गांव से खदेड़ कर सड़क और सड़क से करा रहे है गांव की ओर प्रवेश
सड़कों पर बैठे मवेशियों को गाहे बगाहे ग्रामीण जन आपकी फसलों की सुरक्षा के तहत गांव से खदेड़कर सड़क व अन्य स्थानों की ओर भागते हैं। इसी तरह शहर में नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा गली मोहल्ले की ओर भगा देते हैं। जबकि दोनों ही परिस्थितियों में देखा जाए तो सड़क से वापस लोग गांव की ओर भगा देते है या फिर पुनः ये गांव चले जाते है। दोनों ही परिस्थितियों में फसल तथा सड़क में रहने से जान माल का नुकसान नजर आ रहा है।
बेजुबान समा रहे है मौत के आगोश में राहगीर हो रहे है चोटिल
शहर की सड़कों में दिन हो या रात के समय चौक- चौरहें, गली मोहल्ले में सड़कों पर मवेशी के झुंड को आसानी से देखा जा सकता है। कई बार अंधेरे में मवेशी दिखाई भी नही देते है इस वजह सड़क हादसे भी होती रहती है। शहर के अंदर मवेशियों के डेरा जमाए जाने से अधिकांश सड़क दुघर्टना राहगीर चोटिल हो रहे हैं। वही हाईवे,स्टेट हाईवे अन्य मुख्य मार्गो में होने वाले सड़क दुर्घटना पर बेजुबान काल के आगोश असमय में समा रहे हैं। जिसमे बीते दिन कोतरारोड क्षेत्र में 5 मवेशी की जान हाइवे में गई थी।
प्रतिदिन 350 और खुराकी 150 रुपये की दर से है जुर्माना का प्रावधान
शासन ने मवेशियों के मालिकों को सुधारने के लिए सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे जिसमें लापरवाह मवेशी मालिक पर शिकंजा कसने के लिए 350 रुपए प्रति मवेशी जुर्माना और 150 रुपए के हिसाब रोजाना खुराकी वसूल करना है। यह आदेश निगम सदन में गत वर्ष पारित भी हुआ है, लेकिन निगम न तो ऐसे मवेशियों को पकड़ने में दिलचस्पी दिखा रही और न ही मालिकों पर जुर्माना कर रही है। इससे आदेश निर्देश की अवहेलना तो हो रही है साथ इसका खामियाजा राहगीर व बेजुबान दोनो उठा रहे है।
वर्जन
सरकार बस योजना निकाल रही है उसका जमीनीस्तर में कोई सरोकार नहीं हो रहा है इसकी प्रमुख वजह अधिकारी कर्मचारी की उदासीनता है। मवेशियों के जमावड़ा से राहगीरों से लेकर स्वयं बेजुबान चोटिल हो रहे है।इस पर संजीदगी से कार्य कर दोनो को सुरक्षित रखना जिम्मेदार विभाग की महती जिम्मेदारी है।
शुभम सिंह, स्थानीय युवा कांग्रेस नेता
वर्जन
विगत दिनों सड़को में घूमने वाले व बैठकर जुगाली करने वाले मवेशियों को खदेड़ कर गांव में जबरन प्रवेश कराया जा रहा था। इसके लिए हमारे द्वारा आपत्ति की गई थी। नगर निगम प्रशासन को मजबूत इच्छा शक्ति के तहत बेजुबान को गोठान और कांजी हाउस में रखना चाहिए।
गजानंद पटेल, छातामुड़ा निवासी