*4 माह में ही जिले में मिले 10 हजार 55 कुपोषित बच्चे, हर साल बढ़ता जा रहा आंकड़ा*
*धरमजयगढ़, लैलूंगा, कापू व मुकडेगा में सबसे ज्यादा कुपोषण*
*रायगढ़।* शासन के लाख प्रयासों के बाद भी जिले में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है। इस वित्तीय वर्ष के 4 माह में जिले में 10 हजार 55 बच्चे कुपोषित मिले हैं। इस तरह कुपोषण का आंकड़ा हर साल बढ़ता ही जा रहा है। धरमजयगढ़, लैलूंगा, कापू व मुकडेगा में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे मिले हैं।
जिले में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग गंभीर नजर नहीं आ रहा है। जिसके कारण बच्चे कुपोषण का दंश झेलने को मजबूर हो गए हैं। लगातार कुपोषित बच्चे मिलने का क्रम जारी है। इसके बाद भी शासकीय अमला कोई ठोस कदम उठाता नजर नहीं आ रहा है। शहर के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी तादाद ज्यादा है। वर्ष 2022 में जिले में 12.86 व वर्ष 2023 में भी 12.86 प्रतिशत बच्चे कुपोषित पाए गए थे, जबकि इस वित्तीय वर्ष के 4 माह में ही 13.25 प्रतिशत बच्चे कुपोषित की श्रेणी में रखे गए हैं। वहीं इस साल कुपोषित बच्चों की संख्या 10 हजार 55 हो गई है। जबकि अभी साल पूरा होने में 8 माह बाकी हैं। जिले में कुपोषित बच्चों की ऊंचाई और वजन के अनुसार उनमें कुपोषण के स्तर का पता लगाया जाता है। महिला बाल विकास विभाग की मानें तो जिले में 2 हजार 706 आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हैं। यहां हर माह 0 से 5 साल के बच्चों का वजन किया जाता है। जबकि साल में एक बार वजन त्योहार मनाया जाता है। जिसके बाद बच्चों को अलग-अलग वर्ग में बांटा जाता है।
*पोषण पुनर्वास केन्द्र में 5 बच्चों का हो रहा इलाज*
शहर के मातृ शिशु हॉस्पिटल (एमसीएच) में पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) बनाया गया है। जहां 10 बच्चों को रखने की क्षमता है। यहां बच्चों को गंभीर हालत में भर्ती कराया जाता है। जिस तरह बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं उनके लिए और बेड की आवश्यकता पड़ती है। सूत्रों की मानें तो ऐसी स्थिति होने पर यहां अलग से बेड लगाए जाते हैं। इस तरह बच्चों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है। वर्तमान में यहां 5 बच्चे भर्ती हैं। बच्चों के कुपोषण के दायरे से बाहर आने पर उन्हें घर भेजने की बात कही जा रही है।
*नहीं हो रहा स्वास्थ्य परीक्षण*
सूत्रों की मानें तो बच्चों का प्रति मंगलवार को स्वास्थ्य परीक्षण नियमित रूप से नहीं हो रहा है। इन्हें विटामिन की गोलियां भी नहीं दी जा रही हैं। बच्चे आंगनवाड़ी केंद्र में जाते हैं, लेकिन वहां उन्हें न तो ठीक से खाना मिलता है और न ही कभी दवा आदि दी जाती है। कुछ बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चे को आज तक एक गोली नहीं मिली है। आंगनबाड़ी केंद्र एक-दो घंटे खुलने के बाद बंद हो जाते हैं। कार्यकर्ता एवं सहायिका इन केंद्रों पर ताला लगा देती हैं। सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण अंचलों की आंगनबाड़ी केंद्रों में हैं।
*पालकों को होना होगा जागरूक : डीपीओ*
इस संबंध में महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी एलआर कच्छप ने कहा कि बच्चों को 5 साल तक नियमित रूप से वजन कराना अनिवार्य है। किसी बच्चे का वजन लगातार तीन माह तक नहीं बढ़ रहा है तो उसको डॉक्टर को दिखाना जरूरी है। इससे बच्चों के पोषण स्तर का ज्ञान होता है, लेकिन अधिकांश पालक बच्चों को वजन कराने के लिए आंगनबाड़ी नहीं लाते हैं, जिससे उनके कुपोषण होने या नहीं होने का पता नहीं चल पाता। उन्होंने आगे कहा कि आंगनबाड़ी से मिलने वाला रेडी टू ईट को बच्चों को 6 बार करके खिलाने में ही फायदा है। क्योंकि पालक बच्चों को ज्यादा मात्रा में रेडी टू ईट को दे देते हैं जिससे बच्चे उसे खा नहीं पाते और उसे खुद पालक खा जाते हैं, इस तरह बच्चों के पोषण आहार पर डंडी मारा जा रहा है।
*इस तरह जिले में बढ़ रही कुपोषित बच्चों की संख्या*
वर्ष वजन कुपोषित प्रतिशत
2021-22 114735 12661 12.86
2022-23 95038 12219 12.86
2023-24 75854 10055 13.25