जिले में हर साल 1.82 करोड़ मीट्रिक टन फ्लाई ऐश का हो रहा प्रोडक्शन, निपटान के लिए चाहिए 125 हेक्टेयर भूमि
50 फीसदी ऐश का ही हो रहा निपटारा, शेष खुले में फेंक रहे उद्योग प्रबंधन
रायगढ़। जिले में फ्लाई ऐश एक अभिशाप बना हुआ है। हर साल एक दर्जन से अधिक उद्योगों से करीब1 करोड 82 लाख मीट्रिक टन फ्लाई ऐश का प्रोडक्शन हो रहा है, लेकिन पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार केवल 50 फीसदी फ्लाई ऐश का ही निपटारा हो पा रहा है। जबकि उत्पादित होने वाले फ्लाई ऐश का शत-प्रतिशत निपटारा करने का प्रावधान है। वर्तमान में फ्लाई ऐश के निपटारे के लिए करीब 125 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है। बता दें कि हर साल करीब 25 से 30 फीसदी तक फ्लाई ऐश का उत्पादन बढ़ रहा है।
बता दें कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने फ्लाई ऐश उत्पादन व इसके निपटान को लेकर कई नियम बनाएं हैं, जिसक ा पालन अनिवार्य रूप से करने का निर्देश भी दिया गया है, लेकिन एनजीटी के नियमों को लेकर उद्योग प्रबंधन गंभीरता नहीं बरतते हैं। एनजीटी ने फ्लाई ऐश के उपयोग को लेकर भी दिशा निर्देश जारी किए हैं। जिसके तहत उद्योगों से निकलने वाले फ्लाई ऐश का उपयोग लैंड फिलिंग और माइनिंग फिलिंग सहित ब्रिक्स निर्माण करने के लिए करना है। वहीं फ्लाई ऐश के शत-प्रतिशत उपयोग करने का प्रावधान किया गया है। सूत्रों के अनुसार जिले में स्थिति जेएसपीएल, जेपीएल तमनार, जेएसडब्ल्यू, डीबी पावर, एसकेएस, एनटीपीसी, टीआरएन रूपाणाधाम, नवदुर्गा, एनआर इस्पात व सिंघल जैसे प्लांटों से हर साल लाखों मीट्रिक टन फ्लाई ऐश निकलता है, इसमें से मुख्य रूप से जेएसडब्ल्यू, डीपीपावर, कोरबा वेस्ट, एनटीपीसी,अडानी, जेपीएल व जेएसपीएल के डाइक पूरी तरह से भर चुके हैं, इनके पास फ्लाई ऐश के निपटान के लिए और अतिरिक्त डाइड या जगह नहीं है। ऐसी स्थिति में इसका पर्याप्त निपटान नहीं हो पा रहा है। वहीं जिन उद्योगों के पास फ्लाई ऐश के निपटान के लिए जगह नहीं है, वे खुले में इसे डंप कर रहे हैं। उद्योगों से निकलने वाले फ्लाई ऐश हवा, पानी व खेतों में फैल रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए भी काफी हानिकारक साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि बीते साल तमनार विकासखंड के करीब एक दर्जन से अधिक प्रभावित गांव के रहवासियों ने जिला प्रशासन से इसकी शिकायत कर कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन इस पर ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन ही मिल सका। मुख्य बात यह है कि यह पहली बार नहीं है, जब प्रभावित ग्रामीणों ने इसकी शिकायत की हो। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण विभाग केवल जुर्माना लगाकर कागजी घोड़े दौड़ाने में लगा है। इसके बाद भी हालात सुधरते नजर नहीं आ रहे हैं।
2030 तक डेढ़ गुना बढ़ेगा उत्पादन
इस संबंध में सूत्र बता रहे हैं कि हर साल जिले में फ्लाई ऐश का उत्पादन करीब 25 से 30 फीसदी तक बढ़ रहा है। इस हिसाब से वर्ष 2030 तक की स्थिति में सालाना फ्लाई ऐश का उत्पादन 3 करोड़ मीट्रिक टन तक हो जाएगा। वहीं इसके निपटान के लिए करीब 250 हेक्टेयर की भूमि की जरूरत होगी। गौर करने वाली बात यह है कि फ्लाई ऐश के उत्पादन व निपटान के अंतर को पाटने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। जिसकी वजह से यह समस्या भी साल दर साल बढ़ती जा रही है।
इस तरह हो रहा उत्पादन
स्पंज आयरन व पावर प्लांटों से फ्लाई ऐश के उत्पादन की बात करें तो हर साल तकरीबन एनटीपीसी से 30 लाख टन, जेएसपीएल से 23 लाख टन, जेपीएल से 21 लाख टन, एमएसपी से 1.25 लाख टन, अंजनी स्टील से 2 लाख टन व जेएसडब्ल्यू से 2 लाख टन से अधिक उत्पादन हो रहा है। फ्लाई ऐश के निपटान के लिए नियमित मॉनिटरिंग के लिए पर्यावरण विभाग ने प्रत्येक माह क ो रिर्पोट बनाकर प्रेषित करने को लेकर भी निर्देशित किया है, किंतु यह इस भी नियमित रूप से पालन नहीं किया जाता है।
केलो नदी भी हो रही प्रदूषण
एनजीटी की रिपोर्ट के अनुसार इसी फ्लाई ऐश क ी वजह से केलो नदी का नाम भी देश की चौथी सबसे प्रदूषित नदी में शामिल हो गया है। स्थिति यह है कि केलो नदी में किसी न किसी माध्यम से फ्लाई ऐश के कण पहुंच रहे हैं। इसकी पुष्टि कई बार एनजीटी अपनी रिपोर्ट में कर चुका है। वहीं इसके खत्म हो रहे अस्तित्व को लेकर भी कई बार महत्वपूर्ण कदम उठाने की बात कही गई है। किंतु इन सब के बावजूद भी केलो नदी का जल लगातार प्रदूषण की मार झेल रहा है।
वर्जन….
फ्लाई ऐश क े निपटारे और परिवहन में लापरवाही बरतने के मामले में लगातार कार्रवाईयां चल रही हैं। उद्योग प्रबंधन को इसके लिए निर्देशित किया गया है।
अंकुर साहू
जिला पर्यावरण अधिकारी
जिले में लगातार फ्लाई ऐश का उत्पादन बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके निपटान के लिए किए जा रहे उपाए नाकाफी साबित हो रहे हैं। एनजीटी के नियमों व सहित रिपोर्ट के आधार पर इसके लिए कई बार लिखित व मौखिक शिकायत भी की जा चुकी है।
राजेश त्रिपाठी